सोमवार, 31 जनवरी 2022

भक्ति गजल

चाकर  एक  बेर  राखि  क'  देखू  सभटा  अहाँकेँ टहल करब
पीसब भाँग नित्य आबि क' जे जे कहबै प्रभू हम कहल करब

डरबै  भूत  नै  पिसाच  सँ  कहियो  सेवा  सदति  होइते रहत
रहबै  घर  त' घर म' सदिखन आ बाहरमे मशानो रहल करब

नंदी  केर  ध्यान  हम  रखबै   भगतै  दौड़िकेँ  जा  क'  रोमबै
दोसर  ठाम  नै  कतौ  हम  जेबै भरि जीवने हम बहल करब

पूजा  केर  ओरियान  क'  नित्तहुँ देखब तखन और काज हम
नव नव फूल ताकि हेरि क' छोड़ब नै हम चरणमे गहल करब 

मालिक  एतबी  दया  करियौ  ने हे नोकरी पर म' राखि लिअ
कतबो काज माँथ पर रहतै नामे जापि सभ दुख सहल करब 
                                  
मात्राक्रम: २२२१-२१२१-१२२२-२१२२-१२१२

अभिलाष ठाकुर








रविवार, 30 जनवरी 2022

परिपक्व होइत मैथिली गजल: समीक्षा

ई कहब से कोनो अतिशयोक्ति नहिं जे 'मैथिली गजल' किछु साल पूर्व टिकुले रहए आइ बेस कोशा बनि तैयार भ रहल छैक फल देबा लेल, तहियो में जँ सहजता पूर्वक मैथिलीक अपन गजलशाश्त्र भेटि जाए अन्चिनहार आखरक रूपमे तखन गजल लेल बेसी मेहनति क खगते नहिं रहि जाइत छैक । 

अन्चिनहार आखरक रूपमे ई एकटा एहेन गजलशाश्त्र भेटल अछि जे मैथिली गजलकेँ अरबी, फारसी ओ उर्दू गजलक समकक्ष पहुँचेबामे समर्थ सिद्ध भ रहल अछि। मैथिली गजलक एकटा सुप्रसिद्ध नाम जे भारतसँ ल क नेपाल धरि अपन गजलसँ श्रोताक माँझ एकटा भिन्न छाप छोड़निहार गजलकार श्री 'कुन्दन कुमार कर्ण' जी केँ किछु गजल कुन्दन गजल डटकम केर माध्यम सँ आ किछु हुनक फेसबुकक भीतसँ पढ़बाक मौका भेटैत रहैत अछि जे हमरा लेल सौभाग्यक गप्प छै । 

कुन्दन कुमार कर्ण

हुनक किछु गजल पर हम अपन विचार राखि रहल छी । 12 मई 2020 क एकटा बाल गजल जे शाइरक अपन वेवसाईटपर प्रेशित कएल गेल छन्हिं जे निम्नलिखित अछिः

हमर सुन्नर गाम छै 
फरल ओत' आम छै 

विपतिमे संसार यौ 
प्रकृति जेना बाम छै 

निकलि बाहर जाउ नै 
बिमारी सभ ठाम छै 

सफा आ स्वस्थ्य रहब 
तखन कोनो काम छै 

जनककें सन्तान हम 
जनकपुर सन धाम छै 

अयोध्या छै घर जकर 
तकर नाओ राम छै 

अहि गजलक बहर-1222-212 छैक । अहि गजलक मतला देखू शाइर जेना बालपनमे डूबि अपन गामक वर्णन करैत अपन सखा, मित्रसँ कहि रहल हो सोझे बाल्यावस्थामे पहुँचा रहल अछि हिनक ई मतला 
"हमर सुन्नर गाम छै 
फरल ओत' आम छै" - तकर तुरंते बाद जखन आगू सभ पहिल शेर देखै छी त थोड़ेक असहजता भेल तैयो शेर पर विमर्श करैत छी आगूक शेर देखू- 
विपतिमे संसार यौ 

प्रकृति जेना बाम छै- जँ शाइर शिर्षक 'बाल गजल' देलखिन्ह त सभ शेर मतला सहित 'बाल' बोधपर केंद्रित हेबाक चाही नै कि कोनो एहेन जे बच्चा लेल असहज होय बूझै लेल,कियाक त बच्चा क विपति केर ज्ञान नै रहैत छै शेर स्वतंत्र भाव दए ई थोड़े अखड़ल आ जँ शेर स्वतंत्र रखबाक रहैन्ह त शीर्षकमे 'बाल' नै द सोझे 'गजल' देबाक चाही । दोसर ठाम बहरक त्रुटी सेहो अभरल अछि मतलाक सानीमे 'फरल ओ/तs आम छै' 122/1212 जखन की हिनक गजलक बहर 1222/212 पर केंद्रित छन्हिं । 

आब चलै छी दोसर गजल दिसः 25/11/2013 

धधरा नेहक हियामें धधकैत रहि गेलै 
बनि शोणित नोर आँखिसँ टपकैत रहि गेलै 

बेगरता बुझि सकल केओ नै जरल मोनक 
धड़कन दिन राति जोरसँ धरकैत रहि गेलै 

ऐबे करतै सजिक मोनक मीत जिनगीमें 
सभ दिन ई आँखि खन-खन फरकैत रहि गेलै 

दाबिक सभ बात मोनक कुन्दन 
जबरदस्ती जगमें बनि फूल गमकैत रहि गेलै 

मात्राक्रम-2222-122-221-222 अहि गजलक मतला सुन्दर अछि । पहिल शेरमे 'बेगरता' आ 'जरल मोन' किछु ओतेक नीक सम्प्रेषण नहिं बुझा रहल बेगरता लग 'क्यो दुखड़ा' देलासँ हमरा नजरिमे बेसी नीक लगतै आ मात्राक निर्वहन सेहो भ रहल छै । चलू जे किछु आगू देखैछी 'ऐबे' वा 'एबै'? और एकठाम आँखि 'खन-खन' लग 'फर-फर' बेसी नीक हेतए । 

अहि गजलक मक्ता (भावपूर्ण) बड्ड बेसी नीक लागल ।  

चलाकक शहरमे चलाकीक विधि जानि लेलौं 
गजब भेल चालनिसँ हम पानि जे छानि लेलौं 

बहुत दिन सँ खोजैत रहियै अपन शत्रुके हम 
अचानक नजरि ना पर गेल पहिचानि लेलौं 

मिला देत ओ माटिमे ओ हमरा धमकी द गेलै 
जनमि गाछ छू लेब हमहूँ गगन ठानि लेलौं 

कते साक्ष्य प्रस्तुत करू आर प्रेमक परखमे 
अहाँ केर पाथर हिया देवता मानि लेलौं 

कलीके खिलल देखि बचपन पड़ल मोन काइल 
भसाबैत निर्मालके देखिते आइ हम कानि लेलौं 

विरहमे किए मित्र जिनगी बितेबै अनेरो 
पहिल छोड़ि गेलै त की दोसरो आनि लेलौं 

अलग बात छै ई जे हम होशमे नै छी 'कुन्दन' 
भले लड़खड़ाइत अपन ठाम ठेकानि लेलौं 

मात्राक्रम-122-122-122-122-122 (बहरे मुतकारिब मोअश्शर सालिम) हिनक बहुत रास गजलमे हमर प्रिय गजल अछि तकर कारण सभ शेर कम्मालक छै । 
जेना: 
बहुत दिन सँ खोजैत रहियै अपन शत्रुके 
हम अचानक नजरि एना पर गेल पहिचानि लेलौं - ई शेर, शेर नहिं सवा शेर छैक । 

मैथिली शाइरी














तहिना ई शेर देखल जाउ-:
 
मिला देत ओ माटिमे ओ हमरा धमकी द गेलै 
जनमि गाछ छू लेब हमहूँ गगन ठानि लेलौं - कम शब्दमे बहुत रास बात कहि रहल अछि सभ शेर ।  गजल मनभावन लागल । थोड़ेक हिन्दियैल सन सेहो ! 'खोजैत'कें ठाम अपना लग 'ताकैत' सन सुन्दर शब्द छै त हिन्दीक प्रयोग ठीक नहिं,(ओना नेपाल दिस स्थानीय भाषाक वर्तनी भ सकैछ धरि हमरा नै बूझल अछि) हिनक अधिकांश गजलमे 'मक्ता' बड्ड मजगूत रहैत छन्हिं से बारम्बार देखल गेल अछि । आब यैह गजलक मक्ता देखूः 

अलग बात छै ई जे हम होशमे नै छी 'कुन्दन' 
भले लड़खड़ाइत अपन ठाम ठेकानि लेलौं

अंतमे यैह कहब जे, जे ई बूझै छथि जे मैथिलीमे गजल नै भ सकैत छै वा ओ बात नै आबि रहल शेर सभमे से लोकनिकेँ कुन्दन जीक गजल पढ़बाक चाही आ गुणबाक चाही । स्तरीय गजलक भण्डार सहेजि रखने छथि । हुनका बहुत धन्यवाद। हमर समीक्षाक मादे ई पहिल प्रयास अछि त्रुटी हेबे करतै से देखाओल जाए जाहिसँ हम अपनामे सेहो सुधार क सकी। धन्यवाद ।

लेखक - अभिलाष ठाकुर

गजल

गप्प  करए  गुद्दा  क' चोकर आम सन लोक
धार  बहबै  गप्पे  सँ  बहुतो  घाम  सन लोक

मंच पर भाषण  जे  द' रहलै  तानि छाती क'
ओहनो  छै  किछु  हेंजमे  बदनाम सन लोक

मीठ  बोली   कखनो  सरोते  सन  धरै  छैक
किछु  लहड़ मारए बेस  झंडू बाम सन लोक

छै बचल किछु नै आब की राखत समटि केर
सोन  बूझय अपना क' जे छै ताम सन लोक

ई क' देलौं ओ सभ क' देलौं किछु क' नै गेल
गप्प  करए  हावा म' चक्का जाम सन लोक

                      
मात्राक्रम अछि 2122-2212-2212-21

अभिलाष ठाकुर

गजल

साँच  जे  बाजए  अहि  ठाँ  पारि  देल  जाइ  छै
फेर  झरका  क'  जंगलमे  मारि  देल   जाइ  छै

चुप्प  बैसल  प्रशासन  आबो  कियाक  छै कहू
जा  क' गोली  किया  नै  तैं  छाड़ि देल जाइ छै

बाट  जोहैत  असरा  पर  कानि छै रहल कियो
आबि  रहलौअ  बेटा  कहि  टाड़ि देल जाइ छै

किछु समय लेल लोकक आवाज सुनबए तखन
मोमबत्ती  जरा   फोटो  फारि    देल  जाइ  छै

ओझरा   देतए   फौदारी   म'   जानि  बूझिकेँ
अंतमे  घुमि  क'  सगरो हिय हारि देल जाइ छै

                          
मात्राक्रम अछि 2122-1222-2121-212

अभिलाष ठाकुर

बाल गजल

गजल

पप्पा यौ अहाँ  सूनि  लिअ  आइ मम्मी  हमरा कना देलक
झुठ्ठे  क'  ई  प्यार करए  छै  गालमे  थापड़  लगाा   देलक

कत्तेक  काल  कहू  पढ़बे  करबै  कनियों  नै  खलेबै  हम
संगी  साथी  एल  रहए  आ  घर  सँ सभ केर भगा देलक 

कहलक अझुका टास्क तुँ क'ले ओकर बाद देबौ हम छुट्टी
काउन्टिंग सभटा सुना देलियै हम  एडिसनमे  फसा देलक

मन  छलै  आइ  मैगी  खइतौं कहए छै काल्हिए खेने छलैं
झट  सँ  दौड़ले  आबि  क' हाथमे रोटी सब्जी धरा देलक

अहाँ  किया नै  कहए  छियै  किछु  हमर बात नै सूनए छै
भोरे  उठि  के  आइयो   पप्पा  अइ   ठंढ़ामे  नहा   देलक 


मात्राक्रम- 22-22-22-22-22-22-22-22
ई बहरे-मीर छैक! दू टा अलग-अलग लघु
केँ दीर्घ मानवाक छूट लेल गेल छैक

अभिलाष ठाकुर






गजल

अपनहुँ कने बदलियौ ने सभटा म' सरकारक दोष
अपने जँ छी वृद्ध पाकल बाँकी म' छै बालक दोष

चलबै  जँ नै  थाहिकेँ  आगू  फेर डूमब अछि ठीक
गलती अपन मानबै नै सदिखन कहब धारक दोष

करबै  कर्म  थोड़बो  नै   सभ  भेटए  बैसल  ठाम 
झुठ्ठे  क' छी  माथ  पिटने  देबै तखन भागक दोष 

नै  भुक्त  आ  भोग्य  बूझै  छी राशि नै कोनो लग्न
तैयो  अहाँ  कहि रहल छी अगबे कते मारक दोष 

सुर-तालके  ज्ञान  नै जकरा ओकरो बड़ बड़ बात
ताली जँ नै भेटि रहलै सभटा तखन साजक दोष 

                                       
मात्राक्रम अछि 2212-2122-2212-2221

अभिलाष ठाकुर

गजल

कलमक हथियार सन हथियार की हेतै
धड़गड़ जिह्वा सनक  तलवार की  हेतै

चाहे  राखू  जते  बुधियार  घर  नोकर
पोसल  कुत्ता  सनक  रखबार की हेतै

तेरहमे  जाहि  ठां  संतान  घर जन्मय
फेरो  सोलह  उमरि  कचनार की  हेतै

जे  पठबै  छैक  माँ बाबू क' वृद्धाश्रम
भेने  ओ  चौड़गर   परिवार  की   हेतै

जइ  रचनामे  बहर आ काफिया नै छै
रखने  शीर्षक  गजल भरमार की हेतै

                     
मात्राक्रम अछि 2222-1222-1222
सभ पाँतिमे! सुझाव आमंत्रित अछि 💐

अभिलाष ठाकुर

भक्ति गजल

करै  छी  वन्दना  जगतारिणी   माँ  जानकी की जय
हरू  दुख  कष्ट  सभ हे मैथिली माँ जानकी की जय

बहुत  हम  पाप  केने  छी   करू  उद्धार  हे  जननी
जपै छी  नाम हम  कात्यायिनी माँ जानकी की जय

कते  कानू  कते  खीजू  नजरि  खोलू  न'  आबो माँ
भुखल छी नेह लै बस पाबि ली माँ जानकी की जय

धरा  पर  आबि  जन्मू  फेर  ताकय  बाट सभ मैया 
उगै  सोना  गमकि  पातालिनी माँ जानकी की जय

धरै  छी  आश हम मैया सुनब अरजी अपन पूतक
कहै  अभिलाष   हे उद्धारिणी माँ जानकी की जय

                                      

ई बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम छैक
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

अभिलाष ठाकुर
 

शनिवार, 29 जनवरी 2022

गजल

जे  सत्य  छै  ओकरा   काटल  नै  जा सकैए
नाँगरि क' सटका तखन भागल नै जा सकैए

देखा रहल की करै छी मूनल आँखि नै अछि
पातर  नजरि  छै  बहुत  बाँचल नै जा सकैए

भाँजू न लाठी तकर  ड'र नै हमरा कनिक्को
बच्चा  जकाँ  बूझि  परतारल  नै  जा सकैए

छी  चुप्प  हम  देखि  तैं बजने जै छी अनेरो
मजगूत  छै  यौ  कलम  तोड़ल नै जा सकैए

लागल  उपरका  धुआ  जाए  कोनो  धरानी
भीतर   बला  गंदगी  झारल  नै  जा  सकैए

                           
मात्राक्रम 2212-2122-2221-22
अभिलाष

गजल

की कहब कोना रहैछी बिनु अहाँ केँ
नै जिबै छी बस मरैछी बिनु अहाँ केँ

भोर कहुना काटि लै छी राति अखरै
संग तकिये हम लड़ैछी बिनु अहाँ केँ

की  करी  कोना  रही सभ काट'दौड़ै
आब बहुते दुख सहैछी बिनु अहाँ केँ

आब  कखनो  दूर  नै  जै देब कहियो
आब नै हम रहि सकैछी बिनु अहाँ केँ

छोड़ि दै छी काज सभटा किछु फुरै नै
बैसि  तैं  शब्दे  गहैछी  बिनु  अहाँ  केँ

मात्राक्रम 2122-2122-2122
(बहरे रमल) फाइलातुन×3

अभिलाष ठाकुर

गजल

गप्प बजलौं सोझ तैं बारल गेल छी
भोथ छै कोदारि धरि तामल गेल छी

चोर बाजै जोर कतबो किछु नै तकर
बाल  बच्चा  बूझि परताड़ल गेल छी

जे रचल तकरा बदलि नै सकतै कियो
जीवनक  कंसारमे  लाड़ल  गेल  छी

की कही कोना कही  दुख एते अपन
आन  नै  अपने   सँ तैं मारल गेल छी

नै करब  हम प्रेम  कतबो करबै अहाँ
स्नेम मे  पूर्वहि सँ हम तागल गेल छी

                        
                        
मात्राक्रम  2122-2122-2212 


अभिलाष ठाकुर

गजल

 


तकियाक  तूर  सन  दबाएल  छी  कतेको बेर

अप्पन अछैत  हम बझाएल  छी  कतेको  बेर


बूझैत सभ अकान छी देखि ई समाजक खेल

परतारि  बाल  सन  ठकाएल छी  कतेको बेर


जीवन बहुत नचेलकै नाच  के करत प्रतिकार

पीलहुँ  कहाँ  मुदा  झखाएल  छी कतेको बेर


आयल विपति बनाक' रस्ता सहैत रहलौं खूब

उठबैत  बोझ  थड़-थड़ाएल  छी  कतेको  बेर


ठोकड़ सिखा रहल कते डेग डेग पर अभिलाष

दुख   केर  आँचमे  पकाएल  छी  कतेको  बेर


मात्राक्रम  २२२१-२१२-१२२-१२१-२२२१


अभिलाष ठाकुर

गजल

हमरा लेल करेजा धड़कैत हेतौ तोरो
अदहा रातिक' सपना जगबैत हेतौ तोरो

उड़लै नींद हमर जहिये छोड़ि तों चलि गेलैं
कारी राति भयाबह डरबैत हेतौ तोरो

केना जीब रहल छी घुटि घुटि क' के देखत ई
ओना नोर त ठीके झहरैत हेतौ तोरो

तों मजबूर छलैं से कहि कात होइत गेलैं
हमरा सूनि दरदमे टहकैत हेतौ तोरो

तोहर याद रहत जाबे जीब सकबै अहि ठां
चिठ्ठी देल हमर मन पारैत हेतौ तोरो

मात्राक्रम: 2221-1222-2122-22

अभिलाष ठाकुर

विशेष

मैथिली गजल